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मोटका दादा मुस्कुराता बस्तर motka dada muskurata bastar

 मोटका दादा : एक पुरातात्त्विक धरोहर की बस्तर की लोक संस्कृति में प्रचलित लोकगाथा एवं किवदंतियां*

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छत्तीसगढ़ कोंडागांव जिला मुख्यालय से पश्चिम दिशा में कोंडागांव से नारायणपुर मार्ग 22 किमी चलने पर ग्राम पंचायत चौड़ंग से ठीक पहले दक्षिण दिशा में कोदागांव-कोरहोबेड़ा मार्ग पर महज तीन किमी की दूरी तय करने के पश्चात ग्राम पंचायत पाला आता है | ग्राम पंचायत पाला पहुंचने के पहले पूर्व की ओर जंगल में मुड़ जाते हैं जहां जंगल की सघन झाड़ियों के बीच से गुजरते हुए पगडंडी नुमा व वनों के बीच लगभग 500 मीटर की दूरी पर बनों के बीच छोटी सी पहाड़ी पर मोटका दादा उर्फ अंधकोरी दादा की प्रतिमा स्थित है | (किवदंती है कि अंधकोरी दादा को स्थानीय जानकारों की मानें तो उनके अनुसार स्थानीय ग्रामीण सामान्य बोलचाल की भाषा में अंधकोरी गांडा भी बोलते हैं |) विशालकाय टीेले नुमा पत्थर के बीच भगवान शिव की प्रतिमा नुमा पत्थर पर विराजित हैं | देखने से यह शिव की प्रतिमा ही प्रतीत होता है,जो किसी पाषाण युगीन सभ्यता का द्योतक है | शिव की प्रतिमा है किन्तु इसकी क्षेत्र में किवदंती है जिसके अनुसार सम्मोहन विद्या के जानकार,इस मूर्ति के छोटे कंकड़ या घिसे चूरे को सम्मोहन में काम आने के कारण प्रतिमा के अधिकांश हिस्से को खंडित करके टुकड़ों को लेकर जाते हैं और सम्मोहिनी का प्रयोग करते हैं,ऐसा क्षेत्र के लोग मानते हैं और आज भी प्रचलित है | ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में यह क्षेत्र में किसी पुरातात्त्विक स्थल रहा होगा | पास ही इस सघन व दुर्गम वन क्षेत्र में ईंटों के टुकड़े व धान के भूसा जो ईंट की भट्टी में जलाया जाता है कि मात्रा पायी जाती है | देखने से यह कुछ वर्षों पूर्व का ईंट भट्टी की जली भूसे की तरह लगती है | उपर से विशालकाय पत्थर से सुरक्षित स्थल पर विराजमान मोटका डोकरा (अंधकोरी दादा) के पीछे कई कहानियां छिपी हुई हैं |




मैंने पिछले चार वर्षों की निरंतर खोज के बाद पाया कि इस स्थल के बारे में क्षेत्र में किवदंतियां हैं,स्थानीय जानकार सुगधर जी व उनके साथी मनीराम जी व अन्य साथियों की मानें तो वो बताते हैं कि उनके दादा बताते थे कि किसी जमाने में मांई दंतेश्वरी के दो सिपहसालार व अंगरक्षक वीर बहादुर प्रचण्ड पराक्रमी पुरूष टवडे और घुंसी दो भाई थे | जिनकी बीबियां घर में अपने बच्चों के साथ नित्य दिनचर्या में लीन रहती थी | दिखने में दोनों बहुत सुंदर और सुशील थी | बताते हैं कि मोटका दादा उर्फ अंधकोरी दादा एक पाखंडी था उसकी खास बात यह भी थी कि वह बहुत जानकार था,तंत्र विद्या का प्रकांड विद्वान और उच्चाटन,मारण व सम्मोहन विद्या का जानकार था,उसने अपनी सम्मोहिनी विद्या के वश में करके आसपास के क्षेत्रों के अधिकांश स्त्रियों को अपने माया जाल में फंसाकर अस्मत लूट लेता था | अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने के लिए पीड़ित,प्रताड़ित भी कुछ नहीं बोल पाते थे,क्षेत्र में मोटका दादा उर्फ अंधकोरी दादा का दहशत बोलबाला दूर-दूर तक फैला हुआ था |




किवदंती है कि एक मोटका दादा उर्फ अंधकोरी दादा चौड़ंग गांव की ओर मदिरा की तलाश में अपने खास मित्र मेंडका दादा के साथ गया हुआ था तभी उसकी नजर टवडे और घुंसी की दो सुशील और सुंदर स्त्रियों पर पड़ी | मोटका दादा उर्फ अंधकोरी दादा उन पर मोहित हो गया और उन्हें अपनी माया जाल में फांसने की योजना बनाने लगा | वो जानता था कि टवडे व घुंसी प्रचंड पराक्रमी वीर पुरूष हैं उनकी पत्नियों को सम्मोहन विद्या से माया जाल में फांसना इतना आसान नहीं है |


फिर एक दिन उसने जब टवडे घुंसी वीर पराक्रमी अपने कर्त्तव्य पर मां दंतेश्वरी देवी की पहरेदारी के लिए तैनाती पर गये थे | तभी उसने मौका का फायदा उठाकर गांव की ओर मदिरा की तलाश के बहाने से टवडे घुुंसी के घर पहुंच गया | टवडे और घुंसी की दोनो पत्नियां मेहमानों और आत्मीय जनों की स्वागत सत्कार करने लगे | तभी अपने सम्मोहन विद्या का प्रयोग करते हुए दोनो पत्नियों को अपने वश में करते हुए वहीं भोजन करके जाने का आग्रह किया | परंपरा के अनुसार सभी एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करते वक्त जब दोनो पत्नियां एक साथ भोजन देने व पानी के लिए चली गई तभी दोनों के ढोबली(थाली) में मोहनी डाल दिया | फिर दोनों अपने वश में हो गई | दोनों को अंधेरे का फायदा उठाकर रातों रात पाला गांव के जंगल में लेकर गया | अंधेरे में कोर(कपट,छल) करके लेकर जाने के कारण इस मोटका दादा को अंधकोरी दादा के नाम से भी जानते हैं | जहां दुर्गम वन में कोई नहीं आता था | वहीं पहाड़ी पर अपना डेरा बनाकर रहने लगे | सम्मोहन के वश होकर दोनों पत्तियाँ मोटका दादा के साथ रहने लगे | साथ ही इस बात की जानकारी अपने खासमखास वफादार मेंडका दादा को देकर कि तुम टवडे और घुंसी के इलाके में आने की गोपनीय तरीके से खबर देते रहना | मेंडका दादा मोटका दादा के डर से दिन रात अपनी ड्यूटी में रत रहता |


जब इधर गांव में सुबह हुई और पता चला कि टवडे और घुंसी कि दोनों पत्नियां घर पर नहीं हैं | और मोटका दादा के पहले दिन को आने की पास पड़ोस को खबर थी | हवा की तरह बात फैल गई | गांव के लोगों के द्वारा जाकर टवडे और घुंसी को खबर दिया गया तो दोनो भाई तुरंत ही छुट्टी लेकर घर आ गये | जब असलियत पता चला कि मदिरा पीने के लिए मोटका दादा आया था | तो टवडे और घुंसी को मोटका दादा के चाल समझते देर नहीं लगी | फिर टवडे ने घुंसी को भेजा कि जाओ तुम देखकर आओ कि पहाड़ी में रहने की खबर है क्या यह सच है |


घुंसी बहुत बलशाली और प्रचंड पराक्रमी वीर पुरूष थे | फिर जाते हुए रास्ते में पहरेदारी करते मेंडका दादा को देखकर घुंसी की आंखों से आग निकलने लगे और मेंडका दादा को अपने भाले से घोंप कर फरसा से सात टुकड़ा करके फैंक दिया | आज भी जाने के रास्ते पर मेंडका दादा के टुकड़े पत्थर के रूप में पड़े हुए हैं | फिर,जब पहाड़ी पर पहुंचे तो घुंसी ने देखा कि मोटका दादा को टुवडे घुंसी को दोनों पत्नियां नहला रही हैं,और भोग विलास में रत हैं | गुस्से से तिलमिलाये घुंसी ने मोटका का अंग-भंग करते हुए दोनो हाथ काट दिया और दोनो पत्नियां देखते ही डर के मारे जाकर करपन(गुफा) में छुप गई | गुस्से में घुंसी करपन(सुरंग) में डारा-पाना(पत्तीयां और घासफूंस) डालकर उरंज(आग लगा) दिया | और आ गया |


फिर जब आग लगी तो दोनों पत्नियां जल गई और वहां से भाग गई और जो जलकर वहां से 3 किमी दूर झगड़ीनपारा के जंगल में जाकर अपना आश्रय बनाकर रहने लगी जिसे करले जुंगे(जरही डोकरी) के नाम से जाना जाता है | एवं जो जलने से कपड़े भी नहीं बचा पाई और नंगी ही वहां से भाग कर कुछ दूर पाला गांव की दूसरी छोर पर आश्रय बनाकर रहने लगी जिसे बांडी जुंगे(नंगी डोकरी)के नाम से जानते हैं | कालांतर में ये दोनों ग्राम पाला की ग्राम देवी बांडी माता व ग्राम झगड़ीनपारा की ग्रामदेवी जरहीमाता के नाम से आज भी पूजी जाती हैं |


ग्राम चौड़ंग जिसका गोंडी नाम ही टवडे है | और आज भी यहां पर टवडे और घुंसी की पूजा की जाती है | वो आज भी वहां और आसपास के हजारों गांव व बस्तर के प्रमुख देवी देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं |


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