tumesh Chiram | |||||
नाम | तुमेश कुमार चिराम (आर्यन चिराम ) |
पिता का नाम | स्व.तुलसी राम चिराम |
माता का नाम | श्रीमती रामेश्वरी चिराम |
जन्मतिथि | 02/04/1994 |
योग्यता | बी.एससी,बी.ए,एम. ए. (समाजशास्त्र), एम. ए.(संस्कृत),एम.एस.सी(गणित), |
अन्य योग्यता(व्यवसायिक) | डी.एड, डी.सी.ए, बी.पी.ओ, ऑफिस मैनेजमेंट, टेली कोर्स, ऑटोमोबाइल्स, |
गोत्र | चिराम |
मामा गोत्र | घरत |
वर्तमान कार्य | शिक्षक |
विवाहस्थिति | विवाहित |
सम्पर्क | 7999054095 |
ईमेल | |
पूर्ण पता | कोदागाँव पटेलपारा जिला उत्तर बस्तर कांकेर छ.ग पिन न.494670 |
वेबसाईट |
मेरा जन्म स्थान कोदागाँव है जो कांकेर जिला के अंतर्गत आता है और जिला का 2 सबसे बड़ा गाँव है और मेरा बचपन गाँव में ही बिता, मेरे पिता जी का देहांत बचपन में ही हो गया है तो मेरा देख भाल माँ के द्वारा ही किया गया है, और मेरा प्राम्भिक पढाई लिखाई गाँव में ही हुआ कॉलेज कांकेर में हुआ और अभी भी पढाई हो ही रहा है, समाज के प्रति मेरा जिज्ञासा बचपन से ही रहा है, और मेरे घर में कोई सियान न होने के स्थिति में मै बचपन से ही सामाजिक मीटिंगों में भाग लेता था, जब मै लगभग 9 क्लास का स्टूडेंट था तब से सामाजिक मीटिंग अटेंड करते आ रहा हूँ और धीरे धीरे समाज के प्रति रूचि जागृत होते गया शुरू में केवल दिन में होने वाले सामाजिक मीटिंग और कार्यक्रमों में भाग लेता रहा फिर जैसे जैसे उम्र बढती गई रात वाले मीटिंगों में भी जाने लगा और उसके बाद समाज में उठना बैठना और समाज के गतिविधियों में कांफी दिलचस्पी बड गई थी और मुझे समाज में होने वाले हर गतिविधि का हिस्सा होना बहुत अच्छा लगता था और जब भी कोई समाज के बारे में बात करते थे बहुत ही धैर्य से और उत्सुकता से सुनते सुनते समाज को बहुत ही करीबी से जानने का मौका मिला और आज भी समाज के बारे में जानने को और समझने को हमेशा तैयार रहता हूँ इसी सिलसिले में मुझे जब पहली बार राजा राव पठार जिला धमतरी में आदिवासी कार्यक्रम हुआ तो मै भी अपने गाँव के लोगों के साथ में ट्रेक्टर से वीर मेला पंहुचा और उत्साह से पुलकित होकर अपने दोस्तों के साथ में वीर मेले का आनद ले रहे थे फिर मेरे जो दोस्त लोग थे वे अपने अपने समाज का पेन कॉपी पुस्तक सीडी कैसेट ले रहे थे मै भी लूँगा करके अपने मन ही मन सोचा और सभी पंडाल जंहा पर बुक और अन्य सामग्री बिक रही थी वंहा गया पर नही मिला दुसरे जगह गया नही मिला मुझे बहुत दुःख हुआ मै एक अबोध बालक था जब मुझे उस समय केवल अपने समाज का pen और कोपी और ध्वज चाहिए था पर नही मिला मै मन ही मन खुद को कोस रहा था इतने दिनों तक ये सोच रहा था की हमारा समाज इतना बड़ा सामाज सब कुछ मिलता है नही मिला मै अन्दर ही अन्दर सब को कोस रहा था और आत्मग्लानी से भर गया था अन्दर ही अन्दर खुद से बडबडा रहा था और ऐसे तैसे करके घर आया फिर माँ से कहा की मेरे दोस्त लोग ये ख़रीदे वो ख़रीदे मै कुछ नही ख़रीदा हमारे समाज का कुछ नही मिलता वो कोई कुछ नही बनाते वो बस समाज समाज कहते रहते है माँ कुछ नही बोली उसी दिन मै ठान लिया की मै अपने समाज को आगे बधाऊंगा समाज के लिए वो सब बनाऊंगा, जो आज तक कोई नही बनाये है, मै भी अपने समाज को आगे बढ़ाने के लिए कर्तव्यबद्ध हो गया,और काम में लग गया की किस प्रकार से समाज को आगे बढाया जाए दिन बितते गया फिर मै सामाजिक कार्यो में अपना सहयोग देते गया,कास सभी हल्बा भाई बिना कोई सवार्थ के सामाजिक सेवा करते और सामाजिक जिम्मेदारी को समझने का प्रयास करते तो हमारा समाज भी बहुत विकसित होता और अन्य समाज के लिए प्रेरणा देने वाला होता पर वर्तमान परिस्थिति में टांग खीचने वाला अधिक और साथ देने वाला कम है,और कई बार तो ये बोल देते है बड़ा आया सामाजिक कार्यकर्ता बहुत देखे है ऐसे तोपचन्द या आज तक बड़े बड़े सियान लोग नही कर पाए तो कल के बेंदरा करही ये सब सुन कर पहले दुखी होता था पर अब नही अछि अच्छा काम को हर कोई टोकता है,और अब तो कोई कुछ भी बोले समाज को आगे बढ़ाना ही है, और मै जब तक जिन्दा हूँ समाज के उन्नति और विकास के बारे में ही सोचूंगा ये ठान लिया ना मुझे समाज से पद चाहिए न पैसा न और कुछ मुझे अपने समाज को हर क्षेत्र में आगे लाना है यही मेरा उद्देश्य है और यही मेरा मंजिल कुछ छोटे कार्य जो मानने किया है निचे है
मेरे द्वारा किया गया सामाजिक कार्य | |
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